आज सिंधु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिंधु में
साथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार |
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड़ में साहस तोलो
कभी कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक|
यह असीम निज सीमा जाने
सागर भी तो ये पहचाने
मिट्टी के पुतले मानव ने
कभी ना मानी हार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक|
सागर की अपनी क्षमता है
पर मांझी भी कब थकता है
जब तक साँसों में स्पंदन है
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक|
अदभुत
ReplyDeleteअविस्मरणीय
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ReplyDeleteमैं एक ऐसी कविता चाहता हूं जो श्रोताओ को झकझोर के रख दे।
Nice
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